Saturday, 13 January 2018

डायनो का निवास

बिज्ञान के इस उन्नत दौर में यह बात अवश्य अटपटी और अविश्वसनीय लगेगी , परन्तु जम्मू कश्मीर के एक दुर्गम व दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्र भद्रवाह में प्रति वर्ष लोग एक पवित्र सेब द्वारा संतान प्राप्त करने की आशा रखते हैं।  आस्चर्य  विषय तो यह हैं की इस साधारण से मौशमी सेब की बदौलत अशंख्य निःसंतान स्त्रियों की सुनी गोद हरी भरी होती देखि गयी है।
                                           होता यह है की छोटे कश्मीर की नशीली , बर्फीली घाटियों के 14000  फीट ऊँचे कैलाश पर्वत के जमा  देने वाले गहरे नाले मध्य यह चमतकारी सेब उपलब्ध है।  यह पवित्र कुंड वास्तव में भगवन नाग की एक अशीम हिमाछादित झील है।
                                           यहाँ प्रतिवर्ष सितम्बर मास में एक बिशाल मेला लगता है। मेले में जम्मू , कश्मीर , हिमाचल , हरयाणा , पंजाब और दिल्ली तक के अशंकया लोग भाग लेते हैं।  स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक होती है।
                                            सामान्य श्रद्धालु लोग झील के बर्फीले गहरे पानी में सेब फेकते हैं। झील के जमा देने वाले घातक जल में तैरकर , तैरते सेब को प्राप्त करने वाली साहसी पति ही वह सेब निःसंतान पत्नी को खिलाकर मुरादें पूरी कर सकते हैं।  पवित्र झील में सफ़ेद रंग क विशालकाय वासुकि नाग के दर्शन भी अशंकया लोगो को प्रायः होते रहते हैं।  नागराज को बर्फीले पानी में देख कर यात्री दांग रह  जाते हैं।
                                             कैलाश यात्रा वाश्तव में भारतवर्ष की कठिनतम यात्रियों में से है। कश्मीर सरकार की ओर से जगह जगह उपचार , आवास , सुरक्षा आदि  समुचित यात्रियों प्रबंध आदि  समुचित प्रबंध होते हैं।
                                             वासुकि कुंड  आधयात्मिक , ऎतिहासिक और रहश्यमय स्थल हैं।  कहते हैं , लाखों वर्ष पूर्व गरूर और वासुकि का भयानक यूद्ध हुआ था। वासुकि गरूर से बचने के लिए भदरवाह के कैलाश परबत में चुप गए।  गरूर ने वासुकि की छिपने वाली जगह में एक गड्ढा बना दिया।  वह आशिम गड्ढा तत्काल दुद्घ गंगा के पवित्र जल से भर गया। नागराज वासुकि ने उस पावित्र्य जल में छुपकर आत्मा रक्षा की थी। तभी से यह सर्वोच झील विदेशी पर्यटकों और पर्वतारोहियों  आकर्षण का केंद्र हैं। आज भी पर्वतारोही कैलाश पर्वत के परवता रोहन के बिना आपने अभियानों को अपूर्ण मानते हैं।
                                             भद्रवाह के लोग अतयंत सुन्दर , बलिष्ठ और मृदुभाषी हैं। स्थयनी कुंड नृत्य और शानदार रात्रि मेले छोटे कश्मीर की शान हैं।  भद्रवाह की सांस्कृतिक भाषा संगीत है। हर घर में गीत संगीत ढोल मंजीरे और भजन कीर्तन की आवाजें आती रहती हैं।  भौगोलिक स्तिथि खतरनाक सड़कों तथा अत्यधिक पिछड़ेपन के बावजूद अभ्रक जिला डोडा  सुरम्य जम्मू कश्मीर का केरल है। यहाँ सात प्रतिशत स्टीरी पुरुष सुरक्षित हैं।
                                            साँचल माध्यमों की बर्तमान कमी  के कारन यह क्षएत्रा पर्यटन के मानचित्र पर पूरी तरह नहीं उभरा है विषाक्त पश्चात पर्यटक त्रवनियार  है की जो सलामी भद्रवाह के सम्मोहक आलोकिक घाटियों में एक बार पहुंच जायेगा , वह श्वीत्ज़र्लॅंड के जादू और कश्मीर के अनूठेपन को भूल जायेगा।
                                              जो लोग तंत्र मंत्र भूत प्रेत जादू टोना  डाकिनी जैसी रोमांचक बातों को मानते हैं , उन्हें  जानकार आश्वर्य होगा की ऐसी साधनाओ और सिद्धियों के साथ भी गगन चुम्बी कैलाश परबत का नाम जोड़ा जाता है। जम्मू कश्मीर हिमाचल और गढ़वाल के पुरातनपंथी असंख्य पर्वतीय लोगो की दृह धरना है की प्रति वर्ष सितम्बर  के आसपास देश की कुख्यात देने आपने अदृश्य व्वाहनो  वासुकि कुंड के किसी निकटस्थ स्थल पर गुप्त सम्मलेन करती हैं।  वहां वे अपनी वार्षिक घातक उपलब्धियां का हिसाब किताब रखती हैं।
                                              सायद अन्धविश्वाश के इन्ही दिनों में प्रायः जम्मू क्षेत्रया के अनेक पिछड़े लोग  डायनो  आदि से बचने के लिए  सारसो के बीज उनके वस्त्रों में रखते हैं।  घरों के दरवाजों पर धवश के आवशर पर बना पौधा लटकाया जाता है। मान्यता है की जंगली पौधे तथा ऐसे ही घरेलु टोटकों से बच्चे व दुषरे लोग बुरी नज़र से सुरखित रहते हैं।
                                               तीन दिवशीय कैलाश यात्रा को वैकुण्ठ प्राप्ति का सरल मार्ग  माना जाता है। 

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BHAGALPUR K SANDIS COMPOUND ME BHOOT

HELLO FRIENDS.......... mai gulshan aaj aaplogo ko ek new ghost kistory batane ja rha hu.. maine pahle v bataya h ki mai bhagalpur ka rahne...